भारतीय संविधान का प्रस्तावना भारतीय संविधान का एक अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है। यह सिखाता है कि प्रस्तावना के कारण संविधान का महत्व क्या है। यहां प्रस्तावना के महत्व के कुछ पहलू हैं:
- बेरुबारी केस (1960): बेरुबारी यूनियन केस में, सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है और इसे आर्टिकल 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है। हांलांकि, कोई भी संशोधन जो संविधान की मूल संरचना या मूल विशेषताओं को बदल देता है, नहीं किया जा सकता है।
- केसवानंद भारती केस (1973): महत्वपूर्ण केसवानंद भारती केस ने प्रस्तावना को संविधान का हिस्सा मानने की बात को और भी मजबूत किया। अदालत ने तय किया कि हांलांकि संसद का किसी भी भाग को संशोधित करने का अधिकार है, लेकिन ऐसे संशोधन को जो संविधान की मूल संरचना को नष्ट कर देता है या हानि पहुंचाता है, नहीं किया जा सकता है।
- मिनरवा मिल्स केस (1980): मिनरवा मिल्स केस में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान को समझने के लिए एक कुंजी है। इसमें स्पष्ट किया गया कि हांलांकि संसद का किसी भी भाग को संशोधित करने का अधिकार है, ऐसे संशोधन को नहीं किया जाना चाहिए जो संविधान की मूल संरचना को नष्ट करता है, जिसमें प्रस्तावना में उल्लिखित विशेषताएँ शामिल हैं।
- इंदिरा नेहरू गांधी केस (1975): इस केस में, अदालत ने फिर से यह पुष्टि की कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न हिस्सा है, और कोई भी संशोधन इसकी मूल संरचना को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं होना चाहिए।
प्रस्तावना संविधान के एक आंशिक होने के बावजूद भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानी जाती है। यह संविधान के निर्माण में और उसके आवश्यकताओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और यहां के नियमों और ज़िम्मेदारियों का आधार प्रदान करती है।
The Preamble of the Constitution of India is an integral and inseparable part of the Constitution. This principle was established by the Supreme Court of India through several landmark judgments. Here’s why the Preamble is considered an essential part of the Constitution:
- Berubari Case (1960): In the Berubari Union case, the Supreme Court held that the Preamble is a part of the Constitution and can be amended under Article 368. However, any amendment that changes the basic structure or the essential features of the Constitution cannot be made.
- Kesavananda Bharati Case (1973): The landmark Kesavananda Bharati case reinforced the idea that the Preamble is a part of the Constitution. The court ruled that while Parliament has the power to amend any part of the Constitution, it cannot amend it in a way that destroys or abrogates its basic structure.
- Minerva Mills Case (1980): In the Minerva Mills case, the Supreme Court held that the Preamble is a key to understanding the Constitution. It clarified that while Parliament has the power to amend any part of the Constitution, such amendments should not destroy or damage its basic structure, which includes the features mentioned in the Preamble.
- Indira Nehru Gandhi Case (1975): In this case, the court reiterated that the Preamble is an integral part of the Constitution, and any amendments should not violate its basic structure.
The Preamble serves as a guiding light for the interpretation of the Constitution and reflects the core values and principles upon which the Constitution is built. While it can be amended, such amendments should not alter the fundamental character of the Constitution. As a result, the Preamble plays a vital role in the constitutional and legal framework of India, serving as a touchstone for evaluating the validity of laws and amendments.