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वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency)

वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जिसे अनुच्छेद 360 (Article 360) में उल्लिखित किया गया है। यह एक विशेष प्रकार का आपातकाल है जो केंद्र सरकार को राज्यों के वित्तीय परिस्थितियों पर नियंत्रण प्राप्त करने की अनुमति देता है। यह वित्तीय संकट के आपातकाल के रूप में जाना जाता है।

यहां वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) के मुख्य प्रावधानों की जानकारी है:

  1. प्रावधान की घोषणा: वित्तीय आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति की होती है, जो सामान्यतः प्रधानमंत्री और संसद के परिषद की सिफारिश के आधार पर की जाती है।
  2. प्रभाव: एक बार जब वित्तीय आपातकाल घोषित होता है, तो सभी राज्यों में वित्तीय प्रशासन को राष्ट्रपति की निगरानी में करने की अनुमति होती है। इसका अर्थ है कि राज्य सरकारों के वित्तीय कार्यवाही पर व्यापक नियंत्रण लगाया जाता है और सभी वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन केंद्र सरकार के द्वारा किया जाता है।
  3. सबसे पहली घोषणा: यह आपातकाल केवल एक बार घोषित किया जा सकता है जिसके लिए संविधान की मंजूरी सीमित है। पहली बार वित्तीय आपातकाल को 1991 में घोषित किया गया था, जब भारतीय रुपये के वित्तीय संकट का सामना किया गया था।
  4. संविधानिक मंचित्र: वित्तीय आपातकाल के दौरान, संविधानिक मंचित्र (Proclamation of Financial Emergency) जारी किया जाता है, जिसमें घोषणा की जाती है कि किस राज्य की वित्तीय संकट के कारण इस आपातकाल को घोषित किया जा रहा है।
  5. संविधानिक प्रमाण: वित्तीय आपातकाल के दौरान, राष्ट्रपति की निगरानी में राज्यों के वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन किया जाता है और उनका नियंत्रण राष्ट्रपति के अधिकार में होता है। इसका उद्देश्य राज्यों के वित्तीय परिस्थितियों को सुधारना और राष्ट्रीय वित्त की स्थिरता बनाए रखना है।
  6. संविधान की पुनर्स्थापना: वित्तीय आपातकाल के बाद, जब स्थितियाँ सुधार ली जाती हैं, तो संविधानिक मंचित्र को पुनर्स्थापित किया जा सकता है और आपातकाल खत्म किया जा सकता है।

वित्तीय आपातकाल एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संविधानिक उपाय है जो राष्ट्रीय वित्त की स्थिरता और एकता को बनाए रखने के लिए बनाया गया है। यह केवल एक अंतिम उपाय के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए और इसका उपयोग ध्यानपूर्वक और सावधानी से किया जाता है।

A Financial Emergency is an extraordinary provision in the Indian Constitution, outlined in Article 360, that allows the central government to take control of a state’s finances in times of financial crisis. It is a type of emergency referred to as a “financial crisis.”

Here is detailed information about a Financial Emergency:

  1. Proclamation: The declaration of a Financial Emergency is made by the President, typically on the advice of the Prime Minister and the Council of Ministers. It is not limited by the recommendations of the Cabinet alone; the President has the discretion to make this declaration based on their assessment of the situation.
  2. Impact: Once a Financial Emergency is declared, the financial administration of states comes under the President’s control, and all the financial resources of the states are managed by the central government. This means that the central government can take over the finances of the states and direct their financial activities.
  3. First Declaration: A Financial Emergency has been declared only once in India’s history, in 1991, due to a severe financial crisis caused by an acute balance of payments problem. The crisis was addressed through economic reforms.
  4. Constitutional Proof: During a Financial Emergency, the President’s rule in the state(s) affected is not automatically imposed. The imposition of President’s rule in a state requires a separate proclamation under Article 356.
  5. Recommendations of the Finance Commission: The Finance Commission, which is constituted under Article 280 of the Constitution, plays a crucial role during a Financial Emergency. It recommends measures to overcome the financial crisis and restore financial stability in the country.
  6. End of Financial Emergency: A Financial Emergency can be revoked by the President when they are satisfied that the financial stability of the country has been restored. Once the emergency is revoked, the states regain control over their financial administration.

The provision for a Financial Emergency is a powerful tool in the Constitution to address severe financial crises at the national level. It is, however, intended to be used sparingly and judiciously, as it involves significant centralization of financial powers and affects the federal structure of the country.

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